गुर्जर ने कहा कि 25 जुलाई 2025 को झालावाड़ के पिपलोदी गांव में जो हुआ, वह एक साजिश से कम नहीं था। उन्होंने बताया, "यह स्कूल सालों से खंडहर बन चुका था और गाँव वाले चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे, पर सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।" सूत्रों की माने तो इस स्कूल का नाम शिक्षा विभाग की जर्जर इमारतों की सूची में शामिल ही नहीं था। यह साफ-साफ दिखाता है कि सरकार ने इस खतरे को जानबूझकर नजरअंदाज किया।
विधायक ने सरकार द्वारा मृतक बच्चों के परिवारों को दी गई ₹10 लाख की सहायता पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा, "क्या हमारे बच्चों की जान की कीमत ₹10 लाख है? यह न्याय नहीं, हमारी संवेदनाओं का अपमान है!" उन्होंने गरजते हुए मांग की कि पीड़ित परिवारों को कम से कम ₹1 करोड़ की आर्थिक सहायता दी जाए। उन्होंने कहा, "यह सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि हमारी माँग है कि सरकार को इस लापरवाही की कीमत चुकानी होगी। गुर्जर ने सरकार पर सबसे बड़ा आरोप यह लगाया कि हादसे के तुरंत बाद आनन-फानन में स्कूल के मलबे को हटाया गया और पूरा भवन गिरा दिया गया। उन्होंने कहा, "यह कार्रवाई दिखाती है कि सरकार अपने पापों और भ्रष्टाचार के सबूतों को दफनाना चाहती थी। विधायक ने मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री की चुप्पी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "हादसे के एक महीने बाद भी, मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री घटनास्थल पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। शिक्षा मंत्री का चोरी-छिपे अस्पताल जाकर लौटना उनकी संवेदनहीनता की इंतहा है।"
विधायक सुरेश गुर्जर का समर्थन करते हुए नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी मैदान में उतरे। उन्होंने कहा कि यह हादसा नहीं, बल्कि "सिस्टम द्वारा की गई हत्या" है। उन्होंने कहा कि जब विधानसभा में इतनी दर्दनाक घटना पर बात हो रही है, तो सत्ता पक्ष के मंत्री आपस में मुस्कुरा रहे हैं। इस दौरान विपक्ष के विधायकों ने एक साथ "शेम-शेम" के नारे लगाए और सरकार से तुरंत जवाब देने की मांग की।
सादर प्रकाशनार्थ



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