दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष विजय जैन जूली ने बताया कि नगर में चातुर्मास हेतु विराजित मुनिद्वय निष्पक्षसागर महाराज व निस्पृहसागर महाराज के सानिध्य में दशलक्षण महापर्व हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। इसके अंतर्गत महापर्व के आठवें दिन उत्तम त्याग की महिमा बताई गई। प्रातः काल मुनिद्वय निष्पक्षसागर व निस्पृहसागर महाराज की मंगल देशना व आहारचर्या सम्पन्न हुई। दोपहर में आचार्य उमास्वामी महाराज की कालजयी कृति तत्वार्थ सूत्र का सामूहिक वाचन व कक्षा आयोजित की जा रही है। सांयकाल मे प्रतिक्रमण, गुरुभक्ति व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।
वैभव की तलाश में शांति का त्याग कर रहा आज का व्यक्ति : मुनि निष्पक्षसागर महाराज
मुनि निष्पक्षसागर महाराज ने बताया कि हम ना त्याग को समझ रहे हैं ना तपस्या को। केवल दिखावे की होड़ मे लगे हुए हैं। अपने अंदर की बुराइयों का त्याग भी आवश्यक है। पहले त्याग करना सीखना होगा। उसके बाद ही दान करना सीख सकते हैं। दान भी उत्तम पात्र व्यक्ति को ही किया जाता है। भगवान महावीर ने शांति की चाह में महलों का त्याग कर दिया था। आज का व्यक्ति महलों की चाह में शांति का त्याग कर रहा है। दान करके कभी इतराया नहीं जाता है। कृतज्ञता की भावना से किया हुआ दान ही त्याग की श्रेणी में आता है।
चिड़िया का धन उसकी सोच उसकी संकल्प शक्ति में होता है : मुनि निस्पृहसागर महाराज
मुनि निस्पृहसागर महाराज ने बताया कि वस्तुओं का त्याग भले ही ना कर पाओ लेकिन उसके प्रति मोह का त्याग तो किया ही जा सकता है। कुछ छोड़ने पर कुछ मिलेगा, बहुत कुछ छोड़ने पर बहुत कुछ मिलेगा और सब कुछ छोड़ने पर सब कुछ मिल जाता है। त्याग केवल धन का नहीं होता है।


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