अतुल्य भारत एक्सक्लूसिव | भैसोदा की वैध कॉलोनियों का सच: वैधता के नाम पर जनता पर बोझ, कॉलोनाइज़र पर मेहरबानी!

कपिल चौहान | भैसोदामंडी: भैसोदा नगर परिषद क्षेत्र में कॉलोनियों की वैधता का शोर भले राहत का संदेश दे रहा हो, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। नगर परिषद के रिकॉर्ड में अब तक 25 कॉलोनियों को वैध किया गया बताया जा रहा है, लेकिन अतुल्य भारत की पड़ताल में सामने आया है कि इस पूरी प्रक्रिया में फायदा कॉलोनाइज़र को और नुकसान जनता को हुआ है।

पहले से स्वीकृत थीं 15 कॉलोनियां, हैंडओवर नहीं — अब वैध घोषित!

भैसोदा की करीब 15 कॉलोनियां पहले से ही T&CP से स्वीकृत थीं, नक्शे पास हुए, प्लॉट बिके, पर कॉलोनाइज़र ने कभी नगर परिषद को हैंडओवर नहीं किया। अब उन्हीं कॉलोनियों को “वैध” की मुहर लगाकर नगर पालिका कॉलोनी विकास नियम 2021 में शामिल कर लिया गया है। यानी नियमों की आड़ में कॉलोनाइज़र की पुरानी गलती पर पर्दा डाल दिया गया, और जनता से कहा गया — “अब आप 50% विकास शुल्क दीजिए, तब विकास होगा!”

सार्वजनिक ज़मीनों पर सबसे बड़ा खेल!

इन कॉलोनियों में पार्क, सार्वजनिक उपयोग और स्लम पुनर्वास के लिए छोड़ी गई ज़मीनें आज भी कॉलोनाइज़र के नाम दर्ज हैं। नियमों के तहत इन ज़मीनों को हैंडओवर किए बिना परिषद कोई विकास नहीं कर सकती। फिर भी परिषद ने इन्हें “वैध” घोषित कर दिया है। पड़ताल में सामने आया कि कई कॉलोनियों के नए नक्शों में पार्क और पब्लिक ज़मीनों को “ओपन लैंड” दिखा दिया गया, ताकि भविष्य में उनकी बिक्री आसान हो जाए। यानी जनता के हिस्से की हरियाली अब कॉलोनाइज़र के खाते में जा रही है!

राहत का कानून... लेकिन राहत किसे?

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कॉलोनी विकास नियमों में संशोधन करते हुए कहा था कि “अवैध कॉलोनियों को वैध कर जनता को राहत दी जाएगी।” पर असल में राहत जनता को नहीं, कॉलोनाइज़र को मिल रही है।

●किसी एक कॉलोनाइज़र पर एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई।

●कोई जवाबदेही तय नहीं।

●बल्कि अब वही कॉलोनाइज़र “वैधता” के नाम पर बची पब्लिक भूमि भी बेचने की तैयारी में हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, कॉलोनाइज़र को इस प्रक्रिया से दोहरा फायदा हुआ।

पहला, हैंडओवर न करने पर भी कोई सज़ा नहीं।

दूसरा, पब्लिक ज़मीनों को बेचने का खुला रास्ता।

जनता पर डबल मार!

विकास शुल्क के नाम पर बोझ सीधे जनता पर डाला गया है।/कुल लागत का 50% हिस्सा जनता से वसूला जाएगा, जबकि बाकी 50% शासन देगा। मतलब विकास का पैसा भी जनता दे, और पुराने गुनाहों का बोझ भी वही उठाए। स्थानीय लोगों का कहना है कि “वैधता के नाम पर जो खेल हो रहा है, वो विकास नहीं, वसूली का नया फार्मूला है।”

भैसोदा की “वैध कॉलोनियां” अब विकास की मिसाल नहीं, बल्कि व्यवस्था की विसंगति बन गई हैं। जहां दोषी कॉलोनाइज़र आज भी खुले घूम रहे हैं, वहीं जनता से कहा जा रहा है — “शुल्क दीजिए, तभी विकास मिलेगा।”

सवाल उठता है — राहत जनता के लिए थी या कॉलोनाइज़र के लिए?



0 Comments

Post a Comment

Post a Comment (0)

Previous Post Next Post